अत्याचार अधिनियम (अध्याय - 2)

अध्याय- 2

अत्याचार के अपराधों के लिए दण्ड
(3) जो कोई अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य न होते हुए :-

(i) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य् को किसी अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ को पीने या खाने के लिए बाध्य् करता है।
(ii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के परिसर या पडौस में मलमूत्र, रद्दी, वस्तुस, लाश या कोई घृणाजनक पदार्थ को फेंककर उसका नुकसान पहुंचाने, क्षोभ पहुंचाने या अपमान करने के आशय से कार्य करता है।
(iii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्यं के शरीर पर से बल पूर्वक कपडा हटा देता है या उसे नंगे या रंगे हुए चेहरे या शरीर के साथ परेड कराता है या कोई ऐसा समान कार्य कारित करता है जो मानव गरिमा का अल्पीाकरण करने वाला है।
(iv) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्यह के स्वाiमित्वस में की, या उन्हेंस आबंटित या सक्षम प्राधिकारी द्वारा आबंटन हेतु अधिसूचित भूमि दोषपूर्ण ढंग से अभिगृहित कर लेता है या जोतता है या उसे आबंटित भूमि को अंतरित करा लेता है। (iv) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्यह के स्वाiमित्वस में की, या उन्हेंस आबंटित या सक्षम प्राधिकारी द्वारा आबंटन हेतु अधिसूचित भूमि दोषपूर्ण ढंग से अभिगृहित कर लेता है या जोतता है या उसे आबंटित भूमि को अंतरित करा लेता है। (iv) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्यह के स्वाiमित्वस में की, या उन्हेंस आबंटित या सक्षम प्राधिकारी द्वारा आबंटन हेतु अधिसूचित भूमि दोषपूर्ण ढंग से अभिगृहित कर लेता है या जोतता है या उसे आबंटित भूमि को अंतरित करा लेता है।
(v) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को उसकी भूमि या परिसर से दोषपूर्ण ढंग से बेदखल कर देता है या उसके किसी भूमि परिसर या जल पर के उपभोग के अधिकार में हस्तयक्षेप करता है।
(vi) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्ये को सरकार द्वारा अधिरोपित सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए किसी अनिवार्य सेवा के अतिरिक्तो बेगार या इसी प्रकार के अन्यन गलत श्रम या बंधुआ श्रम करने के लिए विवश करता है या फुसलाता है।
(vii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को मत न देने के लिए या किसी विशेष उम्मीाद्वार को मत देने के लिये या विधि द्वारा उपबंधित से अन्यतथा ढंग से मत देने के लिए बाध्यद करता है या अभित्रस्ति करता है।
(viii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यध के विरूद्ध मिथ्याi विद्वेषपूर्ण या तंग करने वाला वाद या आपराधिक या अन्यद विधिक कार्यवाहियां संस्थित करता है।
(ix) किसी लोक सेवक को कोई मिथ्याा या तुच्छ सूचना देता है और उसके द्वारा ऐसे लोक सेवक से अनुसूचित जाति या अनुसूचित जन-जाति के सदस्यस का क्षोभ पहुंचाने या अपमान करने के लिए उससे उसकी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कराता है।
(x) सार्वजनिक रूप से द़ष्टिगोचर किसी स्थाभन में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यप को अपमानित करने के आशय से साशय अपमान करता है या अभित्रस्तष करता है।
(xi) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से सम्बंसधित किसी महिला को अपमानित करने या लज्जा भंग करने के आशय से बल प्रयोग करता है या हमला करता है।
(xii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से सम्बसन्धित महिला की इच्छाह अधिशासित करने की स्थिति में होते हुए और उस स्थिति को उसका लैंगिक शोषण करने में प्रयोग करता है। जिसके लिए वह अन्य था सहमत न होती।
(xiii) अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्योंउ द्वारा सामान्यं रूप से प्रयुक्तज किसी झरने, तालाब या किसी अन्यं स्त्रो त के जल को गन्दाा करता हे जिससे वह उद्देश्यज के लिए कम उचित हो जिसके लिए वह सामान्यक रूप से प्रयुक्ते होता है।
(xiv) अनुसूचित जाति या अनूसचित जनजाति के सदस्यत को सार्वजनिक समागम के स्थावन के रास्तेअ के रूढिगत अधिकार से इन्का र करता है या ऐसे सदस्या को बाधित करता है ताकि उसे सार्वजनिक समागम के स्था‍न पर पहुंचने या प्रयोग करने से रोका जा सके, जहां आम जनता के अन्यस सदस्योंर या उसके किसी भाग को पहुंचने या प्रयोग करने का अधिकार है।
(xv) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यक के सदस्यय को अपना मकान, ग्राम या अधिवास का अन्यन स्थाोन छोडने के लिए विवश करता या कराता है। वह छह मास से कम न होने वाले कारावास से किन्तुा जों पांच वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से दण्डवनीय होगा।

(4) जो कोई अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य न होते हुए :-

(i) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य् को किसी अपराध के लिए जो तत्स मय प्रवृत्तज विधि के अधीन मृत्युकदण्ड से दण्डधनीय है, आशयपूर्वक या यह जानते हुए कि वह उसके द्वारा उसे सम्भधवत: दोषसिद्ध करवा देगा, मिथ्याक साक्ष्य देता है या गढता है, आजीवन कारावास से और जुर्माने से दण्ड नीय होगा, और यदि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का निर्दोष सदस्य, ऐसे मिथ्याि या गढे गए साक्ष्य के परिणामस्व्रूप दोषसिद्ध हो जाता है और फांसी पर चढाया जाता है तब वह व्यजक्ति जो ऐसा मिथ्याप साक्ष्यी देता है या गढता है, मृत्युसदण्डो से दण्डित किया जायेगा।
(ii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य‍ को किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध होने के लिए जो मृत्युूदण्ड नहीं किन्तु सात साल या उससे अधिक की अवधि के लिए दंडनीय है आशय से या यह जानते हुए कि वह उसके द्वारा उसे संभवत: दोषसिद्ध करवा देगा मिथ्या साक्ष्य देता है या गढता है वह ऐसे कारावास से जिसकी अवधि छह मास से कम नहीं होगी किन्तुद सात वर्ष या उससे अधिक की हो सकेगी और जुर्माने से भी दण्डित किया जावेगा।
(iii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यस से संबंधित किसी सम्पोत्ति को नष्ट करने से आशय से या यह जानते हुए कि वह सम्‍पत्ति नष्टष कर देगा अग्नि द्वारा या किसी विस्फोकटक पदार्थ के द्वारा रिष्टि कारित करता है तब वह ऐसे कारावास से जिसकी अवधि छह मास से कम नहीं होगी किन्तुह सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा।
(iv) किसी भवन को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यस द्वारा सामान्या रूप से पूजा स्थजल के रूप में या मानव निवास के रूप में या सम्पनत्ति की अभिरक्षा के लिए स्थाेन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है को क्षति पहुंचाने के आशय से या यह जानते हुए कि वह सम्भतवत: क्षतिकारित कर देगा, अग्नि द्वारा या विस्फोकटक पदार्थ द्वारा रिष्टि कारित करता है तब वह आजीवन कारावास और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा।
(v) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन दस वर्ष या अधिक की अवधि के लिए कारावास से दण्डगनीय कोई अपराध किसी व्यहक्ति या सम्प त्ति के विरूद्ध इस आधार पर कारित करता है कि ऐसा व्यसक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्यह है या ऐसी सम्प‍त्ति ऐसे सदस्य से सम्बं धित है, तब वह आजीवन कारावास और जुर्माने से दण्डित किया जावेगा।
(vi) जान बूझकर या इस विश्वाेस के कारण के साथ कि इस अध्यााय के अधीन कोई अपराध कारित किया गया है, अपराधी को विधि‍क दण्ड से बचाने के आशय से उस अपराध को कारित करने के साक्ष्यध को विलुप्ते करता है या उस आशय से अपराध के सम्बधन्ध में कोई सूचना देता है जिसे वह गलत जानता है या विश्वा स करता है तब वह उा अपराध के लिए उपबन्धित दण्डह से दण्डित किया जाएगा।
(vii) लोक सेवक होते हुए इस धारा के अधीन कोई अपराध कारित करता है, तब वह उस अवधि के कारावास से दण्डननीय होगा, जो एक वर्ष से कम नहीं होगा किन्तुउ उस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड तक का ही हो सकेगा।

5. कर्त्त।व्योंव की उपेक्षा के लिए दण्ड् :-

जो कोई लोक सेवक होते हुए किन्तुक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य न होते हुए, जान बूझकर इस अधिनियम के अधीन उसके द्वारा पालन किए जाने के लिए अपेक्षित अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता है उस अवधि के कारावास से दंडनीय होगा जो छह मास से कम नहीं होगा किन्‍तु एक वर्ष तक के लिए विस्तामरित हो सकेगा।

6. पश्चाातवर्ती दोषसिद्धी के लिए वर्धित दंड :-

जो कोई अध्यााय के अधीन किसी अपराध के लिए पहले ही दंडित किया जा चुका है दूसरे अपराध के लिए या दूसरे अपराध के पश्चाजतवर्ती अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है वह ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय होगा जो एक वर्ष से कम नहीं होगा और जो उस अपराध के लिए उपबंधित दंड तक हो सकेगा।

7. भारतीय दंड सहिता के कुछ प्रावधानों की प्रयोज्यरता :-

इस अधिनियम के अन्य प्रावधानों के अध्यीधीन भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 34 अध्यांय III अध्याीय IV अध्या य V क धारा 149 और अध्यारय XXIII के प्रावधान जहां तक हो सकेगा इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए उसी रूप में लागू होंगे जैसे कि वे भारतीय दंड संहिता के प्रयोजन के लिए लागू होते है।

8. कतिपय व्य क्तियों की सम्प त्ति का समपहरण :-

(1) जहां कोई व्ययक्ति इस अध्याहय के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है वहां विशेष न्या यालय किसी दंड को देने के अतिरिक्तध लिखित ओदश द्वारा यह घोषित कर सकेगा कि उस व्यअक्ति से संबंधित कोई संपत्ति चल या अचल या दोनों जो उस अपराध को कारित करने के लिए प्रयुक्तप हुई हैं सरकार को समपहधरित हो जाएगी।
(2) जहां कोई व्यीक्ति इस अध्याहय के अधीन किसी अपराध का अभियुक्त) है उसका विचारण करने वाले विशेष न्याअयालय के लिए ऐसा आदेश पारित करने के लिए खुला रहेगा कि उससे संबंधित चल या अचल या दोनों संपत्तियों का सभी या कोई भाग ऐसे विचारण की अवधि के दौरान कुर्क कर लिया जाए और जहां ऐसा विचारण दोषसिद्धी पर समाप्तर होता है वहां इस प्रकार कुर्क की गई संपत्ति इस अध्याीय के अधीन अधिरोपित किसी आर्थिक दंड की सीमा तक वसूली के प्रयोजन के लिए समपहरण के लिए दायी होगी।

9. अपराधों की उपधारणा :-

इस अध्याअय के अधीन अपराध के अभियोजन में यदि यह साबित कर दिया जाता है कि :-
(क) इस अध्याकय के अधीन अपराध को कारित करने वाले किसी अभियुक्त) या युक्तियुक्तक संदिग्धक व्याक्ति को अभियुक्त ने कोई वित्ती्य सहायता प्रदान की है तथा विशेष न्याायालय, जब तक कि विपरीत साबित ना हो जाए उप धारणा करेगा की ऐसे व्य क्ति ने अपराध को दुष्प्रे रित किया है।
(ख) इस अध्यापय के अधीन व्य क्तियों के एक समूह ने अपराध कारित किया है और यदि यह साबित हो जाता है कि कारित अपराध भूमि या किसी अन्यद मामले से संबंधित किसी विद्यमान विवाद का परिणाम है तब यह उपधारित किया जाएगा कि अपराध सामान्यन आशय को अग्रसर करने में या सामान्या उद्देश्यय को अग्रसर करने में कारित किया है।

10. शक्तियों का प्रदान किया जाना :-

(1) संहिता में या इस अधिनियम के किसी अन्यय प्रावधान में अंतर्विष्टक किसी बात के होते हुए भी राज्यय सरकार यदि वह ऐसा करना समीचीन और आवश्येक समझे तो :-
(क) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के अनुकरण और उसकी रोकथाम के लिये या
(ख) इस अधिनियम के अधीन किसी मामले या मामलों के समूह या वर्ग के लिये
किसी जिले या उसक किसी भाग में शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसे जिलों या उसके किसी भाग में संहिता के अधीन पुलिस अधिकारी द्वारा प्रयोक्तेध्यं शक्तियों को राज्य् सरकार के किसी अधिकारी को प्रदत्तय कर सकेगी, या जैसा भी मामला हो ऐसे मामले या मामलों के समूह या वर्ग के लिये और विशिष्टय रूप में, किसी विशेष न्याकयालय के समक्ष व्यरक्ति की गिरफ्तारी अन्वेहषण और अभियोजन का अधिकार प्रदान कर सकेगी।
(2) पुलिस के सभी अधिकारी और सरकार के सभी अन्यग अधिकारी अधिनियम के प्रावधानों या इसके अधीन निर्मित नियम योजना या आदेश के निष्पाादन में उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी की सहायता करेंगे।
(3) संहिता के प्रावधान जहां तक हो सकेगा उपधारा (1) के अधीन अधिकारी द्वारा शक्तियों के प्रयोग को लागू होंगे।