छ.ग. राज्य अनु.जाति आयोग अधिनियम

छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जाति आयोग अधिनियम
छत्तीसगढ़ अधिनियम
क्रमांक 25 सन् 1995
छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जाति आयोग अधिनियम, 1995

        (दिनांक 24 मई, 1995 को राज्यपाल की अनुमति प्राप्त हुई, अनुमति (मध्यप्रदेश राजपत्र असाधारण) में दिनांक 29 जून, 1995 को प्रथमवार प्रकाशित की गई)।
        राज्य अनुसूचित जाति आयोग का गठन करने और उससे संसक्त या आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियम।
        भारत गणराज्य के छियालीसवें वर्ष में छत्तीसगढ़ विधान-मंडल द्वारा निम्नांकित रूप से यह अधिनियमित हो -

संक्षिप्त नाम और प्रारंभ-

(1) 1. इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जाति आयोग अधिनियम 1995 है।
     2. इसका विस्तार सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य पर है।
     3. यह ऐसी तारीख को प्रवृत्त होगा जो राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, नियत करें।
(2) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,

परिभाषाएँ-

(क) ‘‘आयोग’’ से अभिप्रेत हैं धारा 3 के अधीन गठित छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जाति आयोग।
(ख) ‘‘सदस्य’’ से अभिप्रेत है ऐसी जातियां, मूलवंश या जनजातियां अथवा ऐसी जातियों मूलवंशो या जनजातियों
    के भाग या उनमें के यूथ जिन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 के अधीन छत्तीसगढ़ राज्य के संबंध में
    अनुसूचित जातियों के रूप में विनिर्दिष्ट किया गया है।

राज्य अनुसूचित जाति आयोग का गठन

(3) 1. राज्य सरकार एक निकाय का गठन करेगी जो ‘‘छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जाति आयोग’’ के नाम से
    ज्ञात होगा और जो इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और सौंपे गये कृत्यों का पालन
    करेगा।
2. आयोग में निम्नलिखित सदस्य होंगे:-
(क) तीन अशासकीय सदस्य जो अनुसूचित जातियों से संबंधित मामलों में विशेष ज्ञान रखते हों जिनमें से एक
     अध्यक्ष (चेयरपर्सन) होगा जिन्हें राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। परंतु सदस्यों में से कम से
     कम दो सदस्य अनुसूचित जातियों में से होंगे।
(ख) संचालक, अनुसूचित जाति कल्याण, छत्तीसगढ़।

अध्यक्ष एवं सदस्यों की पदावधि तथा सेवा शर्तें

(4) 1. आयोग का प्रत्येक अशासकीय सदस्य, उस तारीख से, जिससे कि वह अपना पद ग्रहण करता है तीन वर्ष
    की अवधि के लिए पद ग्रहण करेगा।
2. कोई सदस्य किसी भी समय राज्य सरकार को संबोधित स्वहस्ताक्षरित लेख द्वारा यथास्थिति अध्यक्ष या
    सदस्य का पद त्याग सकेगा।
3. राज्य सरकार, सदस्य के पद से किसी व्यक्ति को हटा देगी, यदि वह व्यक्ति
    (क) अनुन्मोचित दिवालिया हो जाता है
    (ख) किसी ऐसे अपराध के लिये, जिसमें राज्य सरकार की राय में नैतिक अधमता अन्तर्वलित है, दोष सिद्ध
    हो जाता है और कारावास से दंडादिष्ट किया जाता है।
    (ग) विकृतचित हो जाता है और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया जाता है।
    (घ) कार्य करने से इंकार करता है या कार्य करने में असमर्थ हो जाता है।
    (ड.) आयोग से अनुपस्थित रहने की अनुमति अभिप्राप्त किये बिना आयोग के लगातार तीन सम्मिलनों से
    अनुपस्थित रहता है: या
    (च) राज्य सरकार की राय में अध्यक्ष या सदस्य की हैसियत का ऐसा दुरूपयोग करता है जिससे कि उस
    व्यक्ति का पद पर बना रहना अनुसूचित जातियों के हितों या लोकहित के लिये अपायकर हो गया है।
    परन्तु किसी व्यक्ति को इस खण्ड के अधीन तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि उसे मामले में सुनवाई
    का अवसर नहीं दे दिया गया है।
4. उपधारा (2) के अधीन या अन्यथा होने वाली रिक्ति को नया नाम निर्देशन करके भरा जाएगा तथा इस प्रकार
   नामनिर्दिष्ट व्यक्ति अपने पूर्ववर्ती की शेष अवधि तक पद धारण करेगा।
5. अध्यक्ष तथा सदस्यों को देय वेतन और भत्ते और सेवा संबंधी अन्य निबंधन तथा शर्ते ऐसी होगी जैसा कि
    विहित किया जाए।

आयोग के अधिकारी तथा अन्य कर्मचारी

(5) 1. राज्य सरकार आयोग का एक सचिव नियुक्त करेगी तथा ऐसे अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की
    व्यवस्था करेगी जो कि आयोग के कृत्यों के दक्षतापूर्ण पालन के लिये आवश्यक है।
2. आयोग के प्रयोजन के लिए नियुक्त किये गये अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों को देय वेतन तथा भत्
    ते और सेवा संबंधी अन्य निबंधन तथा शर्तें ऐसी होंगी जैसा कि विहित किया जाए।

वेतन तथा भत्तों का भुगतान अनुदानों में से किया जाएगा

(6) अध्यक्ष तथा सदस्यों को देय वेतन तथा भत्तों और प्रशासनिक व्यय जिसके अंतर्गत धारा 5 में निर्दिष्ट
     सचिव अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों को देय वेतन भत्ते तथा पेंशन है, का भुगतान धारा 11
    की उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से किया जाएगा।

रिक्तियों, आदि के कारण आयोग की कार्यवाहियाँ अविधिमान्य नहीं होगी -

(7) आयोग का कोई कार्य या कार्यवाही, केवल इस आधार पर अविधिमान्य नहीं होगी कि आयोग में कोई रिक्त
     विद्यमान है या आयोग के गठन में कोई त्रुटि है।

प्रक्रिया का आयोग द्वारा विनियमित किया जाना -

(8) 1. आयोग जब जितनी बार भी आवश्यक हो अपना सम्मिलन ऐसे समय तथा स्थान पर करेगा जैसा कि
     अध्यक्ष उचित समझे।
2. आयोग स्वयं अपनी प्रक्रिया विनियमित करेगा।
3. आयोग के समस्त आदेश और विनिश्चय सचिव द्वारा या सचिव द्वारा इस निमित सम्यक रूप से अधिकृत
     आयोग के किसी अन्य अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित किए जाएंगे।

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